Justice For Lavanaya : एक तरफ उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं पंजाब में विधानसभा चुनाव के कारण जातिगत माहौल गरमाया हुआ है। वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारत में धार्मिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश चरम पर है। विद्यालयों में हिजाब पहनना चाहिए की नहीं इसपर उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में चर्चा चल रही है। वहीं तमिलनाडु के तंजावुर जिले के सेक्रेड हर्ट्स स्कूल में जब मिशनरी के मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर देश की बेटी लावण्या आत्महत्या को मजबूर हो जाती है। तो उस बच्ची को न्याय दिलाने के लिए न तो कोई राजनीतिक पार्टियां सामने आती है, ना ही तथाकथित पत्रकार कुछ बोल रहे हैं और न ही स्वराभास्कर समेत तथाकथित नारीवादी समाजसेवी!
वहीं तमिलनाडु की स्टालिन सरकार मिशनरियों के सामने घुटने टेके नज़र आ रही है । बात 2 वर्ष पहले की है तब हुआ यूँ की कक्षा 10 वीं की छात्रा लावण्या की दाखिला एक ईसाई मिशनरी में हुई थी जहाँ रह कर पढ़ने के लिए उसके घर वालों ने मिशनरी हॉस्टल में भेजा था। क्योंकि लावण्या हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखती थी इस बात से मिशनरी के प्रशासन सहित कर्मचारियों की आँखों में भी खटकती थी। यही कारण था की लावण्या पर विद्यालय प्रशासन द्वारा मतांतरण के लिए दबाव बनाया जाने लगा।
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पैरेंट टीचर मीटिंग यानि PTM में उसके परिजनों पर मतांतरण का दबाव बनाया जाने लगा। मिशनरियों द्वारा लावण्या की पढ़ाई की पूरी खर्च उठाने का लालच दिया गया। परंतु लावण्या ने मतांतरण को स्वीकार नही किया तो उससे जबरन शौचालय साफ करवाया जाने लगा। कभी विद्यालय की प्रांगण को साफ करवाया जाता था। यहाँ तक पर्व त्योहार के समय में उसे घर तक नहीं जाने दिया जाता था । ये सब सिर्फ इस लिए क्योंकि वो एक हिन्दू लड़की थी एवं मिशनरी के झांसे में या इसायीयत को अपनाने से मना कर दिया।
दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है कि स्वामी विवेकानंद की इस धरती पर जबरन मतांतरण का खेल पूर्ण गति के साथ चल रहा है। शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद जी ने मिशनरी द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण की आलोचना करते हुए कहा था कि धर्म भारत की प्रधान आवश्यकता नहीं है। धर्म व्यक्तिगत स्वतंत्रता है जब इस पर सामूहिक शक्ति हावी होने लगती है तो यह अपराध का रूप ले लेता है। हालांकि डीएमके नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार अभी भी मुख्य आरोपी को बचाने में कोई कसर नही छोड़ रही है। मुख्य आरोपी के जेल से रिहा होने पर डीएमके विधायक द्वारा आरोपी का शॉल दे कर स्वागत करना और जश्न मनाना इसका जीवंत उदाहरण है।
शायद यही वजह है कि जिस ईसाइयत का प्रचार करते हुए मिशनरियों में अहिंसा और प्रेम की बात होती है, आज धर्म के नाम पर इस बच्ची लावण्या की हत्या से उन सभी मूल्यों को तार-तार कर दिया गया है। क्योंकि मुद्दा एक 17 वर्षीय छात्रा से जुड़ा हुआ है, ऐसे में देश का सबसे जिम्मेदार छात्र संगठन होने के नाते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, लावण्या को न्याय दिलाने के लिए सामने आया है। साथ ही लावण्या के लिए न्याय की मांग को ले कर अभाविप देश भर में संघर्षरत है। सांप्रदायिक तुष्टिकरण में प्रणीत डीएमके सरकार के हर अत्याचारी कदम अभाविप के कार्यकर्ताओं को #JusticeForLavanay के लिए और प्रेरित कर रहा है।
न्याय की मांग करते हुए 14 फरवरी को मुख्यमंत्री आवास के बाहर तमिलनाडु सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए अभाविप की राष्ट्रीय महामंत्री निधि त्रिपाठी, राष्ट्रीय मंत्री श्री मुथु रामलिंगम व श्री हरीकृष्णा नागोथू सहित 32 कार्यकर्ताओं को राज्य पुलिस द्वारा 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सरकार विद्यार्थियों द्वारा उठाई जा रही आवाज़ से डर गई हो, जिसके कारण छात्रों पर संगीन धाराएं लगाकर उन्हें डराने की कोशिश की गई, ताकि आवाज उठनी बंद हो। परंतु स्टालिन सरकार को मुह की खानी पड़ी एवं अभाविप के सभी कार्यकर्ताओं को चेन्नई के कोर्ट द्वारा 8 में ही जमानत दे दी गई । भारत में मतांतरण का खेल कोई नया नही है बल्कि यह सदियों से चल या रहा है। ऐसे में डीएमके सरकार के रवैए पर सवाल खड़े हो जाते हैं।