मनोज मानव की कलम से…

प्रीति रिश्तों में सिर्फ यदि सिमटी रहेगी।
जाति-धर्मों में तब तक उलझी रहेगी।।
कभी अमीरी-गरीबी के हत्थे चढ़ेगी।
कभी जुल्मियों के हाथों जलती रहेगी।।
बंदिशों के विरुद्ध, साजिशों के विरुद्ध,
जब बढ़ेगी-चलेगी, प्रेम की गंगा बहेगी।।
गाँव-गलियों में बहेगी समता की हवा
प्रीति उन्नति की आँचल में पढ़ेगी, बढ़ेगी ।।
प्रीति रिश्तों में सिर्फ यदि सिमटी रहेगी।
जाति-धर्मों में तब तक उलझी रहेगी।।