मनोज मानव की कलम से…”रहने लायक देश बनायें”

मनोज मानव की कलम से… “रहने लायक देश बनायें”

Meri Kavita

छोड़ो जाति, धरम की दुनिया,
जोड़ो सबको एक हो जायें,
रहने लायक परिवेश बनाकर
आओ मिलकर फिर देश बनाये-२
जीवन जीने, कुछ रखने का,
कुछ हासिल करने का उद्देश्य बनाये,
छोड़ो नक्शा, जोड़ो नक्शा,
फिर मिलकर हम एक हो जाये,
चलो रहने लायक देश बनाये-२
आग लगे तो, पानी डालें,
बाढ़ चले, पतवार बनाये,
डूबते हुए को फिर तिनका बन,
हाथ बढ़ाकर इन्हें बचाये,
चलो रहने लायक देश बनाये-२
माँ-पिता के प्यार का अंकुरण,
पंचतत्व, सतरंगी बन जाये,
लाल-हरा क्यों? सब रंगो की,
होली, मिलकर इसे सजाये,
चलो रहने लायक देश बनाये-२
कपड़ों के रूप, बालों के रूप,
बहते नौनिहालों के रुधिरों के अश्रु,
साजिश के सजने से पहले,
घुलकर हम स्वरूपहीन हो जाये,
चलो रहने लायक फिर देश बनाये-२

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