किसी भी राष्ट्र के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है वहां की शिक्षा। इसीलिए नई शिक्षा नीति पूरी तरह से हाउ टू थिंक पर फोकस करती है और भारतीयता पर आधारित है। भारत और आत्मनिर्भर बनने के लिए तमाम सारे प्रयास कर रहा है।ऐसे में जरूरी था कि भारत की शिक्षा नीति में भी आमूलचूल परिवर्तन हो। बिना शैक्षणिक बदलाव के पूर्ण विकास की संकल्पना कठिन है।इतिहास भी इसका साक्षी रहा है कि जब भी किसी देश को पराधीन और पराजित करना है सबसे पहला प्रहार उसकी बौद्धिक क्षमता पर किया जाना चाहिए। इसलिए हर आक्रमणकारी ने पहला आघात पुस्तकालयों पर किया।
उन सभी साक्ष्यों को नष्ट किया गया या फिर उन्हें अपने साथ ले गए। इन सभी बहारों ने भारत की बौद्धिक क्षमता की धरोहर को क्षत-विक्षत कर दिया। जिसने जैसी शिक्षा देनी चाहिए लागू कर दी। आधुनिक भारत के निर्माण में यह बड़ी रुकावट बन रही थी, जिसमें परिवर्तन जरूरी था।
कारगर है नई शिक्षा नीति
भारत की नई शिक्षा नीति पूरी तरह तकनीक और रचनात्मकता से भरी है। भारतीय शिक्षा पद्धति में 34 वर्षों के बाद इतने बड़े परिवर्तन हुए हैं। 30 जुलाई की शाम केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी मिलते ही देश के शिक्षा विशेषज्ञों में उत्साह की अनुभूति दिखने लगी, और उत्साह हो भी क्यों न…एक तरफ जहां जीडीपी का 4.43 फ़ीसदी शिक्षा को दिया जाता है वही अब इस क्षेत्र के नाम 6 फ़ीसदी खर्च होगा।
शिक्षा संबंधित सभी जिम्मेदारियां निभाने वाला मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से बनाई गई नई शिक्षा नीति के निर्माण का श्रेय इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के कस्तूरीरंगन को जाता है।
क्या है विशेष
भारत देश में 22 भाषाएं पर ही बोली और लिखी जाती है। वहां विदेशी भाषा को पढ़ाया जाना, बच्चों से उनकी मातृभाषा के साथ-साथ उनके अस्तित्व को छीनने जैसा था। प्रारंभिक शिक्षा को मातृभाषा में न समझकर अंग्रेजी में समझने से बच्चों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था। इस तरह की व्यवस्था से बच्चे ज्ञान और विज्ञान को नहीं समझते थे बल्कि वह केवल भाषा सीखने में लगे रहते थे। अब वहीं नई शिक्षा नीति 2020 में पांचवी तक की पढ़ाई मातृभाषा में होगी।
इसके साथ ही 3 भाषाएं पाठ्यक्रम लागू होगा। जिसमें छात्रों को हिंदी अंग्रेजी सहित एक क्षेत्रीय भाषा भी सीखने को मिलेगी। पाठ्यक्रम को 5+3+3+4 के आधार पर बांटा जाएगा। वहीं उच्च शिक्षा जो कि ड्रॉपआउट से बेहद प्रभावित थी, उस पर भी रोक लगाने का प्रयास किया जा रहा है। नाटक के 3 वर्षीय पाठ्यक्रम के लिए अलग-अलग डिग्रियां दी जाएंगी। 2035 तक लक्ष्य है उच्च शिक्षा में पंजीकरण दर को 26.3 फ़ीसदी से 50 फ़ीसदी तक बढ़ाना । इसके साथ ही 3.5 करोड़ सीटें भी बढ़ाने की योजना है।
तथ्य और तर्क
भारत में जिस तरह से आबादी बढ़ रही है उसी तरह से प्राइवेट स्कूलों की तरफ पलायन भी बढ़ता जा रहा है। मनमानी फीस वसूली पर रोक लगाने में भी यह नीति कारगर साबित होने वाली है। भ्रष्टाचार और नकल पर नकेल कसने के लिए भी कई प्रावधान लागू किये गए हैं। जिसमें सेमेस्टर की तरह ही बोर्ड परीक्षाओं को वर्ष में दो बार कराने की तैयारी चल रही है।
सरकारी स्कूलों में मिड डे मील में नाश्ता और तकनीकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इससे सरकारी स्कूलों की तरफ लोगों का बेहतर रुख देखने को मिल सकता है। नई शिक्षा नीति पर प्रधानमंत्री ने संवाद के जरिए यह साफ-साफ बताने का प्रयास भी किया।
वास्तव में नई शिक्षा नीति में किसी के प्रति भेदभाव नहीं किया गया है। एक तरफ बच्चों का बचपन किताबों के बोझ तले दबा रहता था। वही नई शिक्षा नीति में इंक्वायरी, डिस्कवरी, डिस्कशन और एनालिसिस पर ध्यान दिया गया है। इस नीति में पूंजी पतियों के बखान के बजाय मजदूरों और किसानों पर भी बात होगी। इसके अलावा ‘हाउ टू डू’ पर सोचना होगा।
दूसरा पक्ष
एक तरफ नई शिक्षा नीति में इतने बड़े बदलाव सामने आए हैं वहीं सोचना यह भी होगा कि क्या भारत में ऑनलाइन और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त आधारभूत ढांचे उपलब्ध हैं?
साथ ही प्रोफेशनल एजुकेशन के लिए लक्ष्य पहले से निर्धारित करना आवश्यक होगा। इन सभी बिंदुओं को देखते हुए यह प्रश्न जायज़ है कि क्या भारत के छात्रों में लक्ष्य पहले से निर्धारित करने का विवेक वर्तमान में मौजूद है या नहीं।
शांभवी शुक्ला