1947 में जिस 15 अगस्त को आजादी का दिन तय हुआ, वह तारीख असल में भारतीयों की पसंद नहीं थी। फिर भी इस तारीख को अंग्रेजों ने क्यों चुना था? अगर भारतीयों की पसंद मानी जाती तो आजादी 1947 या 1948 में किस तारीख को मिलती?
14 अगस्त आधी रात को संसद (तब संविधान सभा) का स्पेशल सेशन बुलाने का फैसला किस वजह से लिया गया? आजादी मिलने के बाद तिरंगा पहली बार लाल किले पर नहीं लहराया तो कहां फहराया गया? बंटवारे के बाद पाकिस्तानियों को अपने झंडे से भी ज्यादा किस बात पर फख्र था?
भारतीयों की पसंद क्यों नहीं थी 15 अगस्त की तारीख?
जनवरी 1930 के आखिरी रविवार (26 तारीख) को आजादी का दिन घोषित करने के प्रस्ताव को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पारित किया गया था। यही वह शहर था, जहां नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया था। अपनी बायोग्राफी में भी नेहरू लिखते हैं कि कैसे 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का प्रण लिया गया था। 1930 के बाद हर साल कांग्रेस से जुड़े लोग 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस मनाते थे।
बहरहाल, अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ने का फैसला किया तब उन्होंने इसके लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख चुनी। यह तारीख लॉर्ड माउंटबेटन ने चुनी थी। यह सेकंड वर्ल्ड वॉर में अलाइड फोर्सेस के आगे जापान के घुटने टेक देने का दिन था। भारतीय तो 26 जनवरी 1948 के दिन आजादी चाहते थे लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त से ज्यादा देर नहीं करना चाहते थे।
आखिरकार हमें आजादी अंग्रेजों को गर्व महसूस कराने वाले दिन पर मिली, न कि राष्ट्रवादी भावना के तहत मांगे गए दिन पर।
ज्योतिषियों ने कहा था- 15 अगस्त अशुभ दिन है
ज्योतिषियों ने एलान कर दिया था कि 15 अगस्त अशुभ दिन है। लिहाजा, यह फैसला किया गया कि जश्न 14 अगस्त आधी रात से शुरू किया जाए। संविधान सभा का स्पेशल सेशन बुलाया गया।
सदन की कार्यवाही रात 11 बजे वंदे मातरम् के साथ शुरू हुई। आजादी की लड़ाई में अपनी जान देने वालों के सम्मान में दो मिनट का मौन रखा गया। महिलाओं के एक समूह ने नेशनल फ्लैग पेश किया।
सोर्स: रामचंद्र गुहा की किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी‘