उपराष्ट्रपति ने अपने Facebook पोस्ट के जरिए एक रानी की कहानी सुनाई।उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम की एक वीरांगना रही ‘वेलु नचियार’ की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि ऐसे बहुत से वीर वीरांगना हैं जिन्हें बहुत कम याद किया जाता है। हमें उनके त्याग के प्रति सदैव ऋणी रहेंगे।
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि आज से हर रोज वह इस तरह की कहानियां साझा करेंगे। जिसके बारे में सभी को जानना चाहिए।इन्हें विद्यालयों में भी पढ़ाया जाना चाहिए। रविवार को उनकी कहानी (story) का विषय रहीं रानी वेलु नचियार।
आइए पढ़ते हैं उपराष्ट्रपति की कहानी:
बहादुर कुयिली ने अपनी योजना बताई
“कल विजयदशमी है… नजदीक के गांवों से महिलाएं पूजा के लिए किले में जायेंगी। उन्हीं के साथ मैं प्रवेश कर जाउंगी… अंग्रेजों को शक नहीं होगा।
वेलु नचियार ने किले की तरफ देखा… आंखों में पीड़ा और प्रतिशोध की आग थी।
बरसों पहले ये किला उसका अपना था।उसके पति राजा मुथु वडुगनाथ पेरिया वहां राज किया करते थे।वो शिवगंगा की रानी थी।लेकिन सन 1772 में एक दिन अर्कोट के नवाब और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाएं दुर्भाग्य बनकर आयीं और रानी से उसका पति और शिवगंगा दोनों छीन लिए।
आज आठ साल बाद, रानी वेलु बदला लेने फिर से शिवगंगा आ पहुंची थी।वेलु को बचपन से ही अस्त्र- शस्त्र, घुड़सवारी, तीर-कमान, लाठी-भाले की जबरदस्त ट्रेनिंग दी गयी थी। वो रामनाथपुरम के राजा की इकलौती संतान थीं, अत: उनका पालन राजकुमारों की तरह हुआ था। वो तमिल, अंग्रेजी, फ्रेंच, उर्दू जैसी कई भाषाओं की विद्वान थीं।
शिवगंगा अंग्रेजों के हाथों चले जाने पर, रानी वेलु अपनी दुधमुहीं बच्ची को बांहों में छिपाये जंगल में निकल गयीं… वीर मरुदु भाइयों और वीरांगना उदियाल ने उनकी रक्षा की। दुर्भाग्यवश उदियाल पकड़ी गयी। लेकिन उसने रानी का पता नहीं बताया।
उदियाल भी मार दी गयी।रानी वेलु ने कसम खाई कि अपने पति और उदियाल की मौत का बदला लेकर रहेगी। अपनी मातृभूमि को पुन: आजाद करा कर रहेगी।
काफी दिन रानी ने डिंडीगुल और आसपास के जंगलों में बिताये। फिर मैसूर के शासक हैदर अली की मदद से सेना खड़ी करनी शुरू की।
रानी ने वीर स्त्रियों की एक सेना बनाई, नाम रखा – ‘उदियाल सेना’। इसके सभी सदस्यों को उन्होंने कड़ा सैन्य प्रशिक्षण दिया। साथ ही मरुदु भाईयों ने स्थानीय स्वामिभक्त लोगों की एक सेना एकत्रित की।
फिर रानी ने शिवगंगा के अपने प्रदेश को वापस जीतना प्रारंभ कर दिया। संघर्षपूर्ण आठ वर्षों के बाद आज वेलु की सेना शिवगंगा के किले तक आ पहुंची थी। जिसमें अंग्रेज सुरक्षित बैठे थे।
लेकिन किले को भेदना आसान नहीं था, उसके लिए विशेष तोपें और गोला बारूद चाहिए थे, जोकि रानी के पास था नहीं।
अत: युक्ति के अनुसार ‘उदियाल सेना’ की वीर कमांडर कुयिली अपनी चुनिंदा महिला सैनिकों के साथ ग्रामीण महिलाओं के वेश में किले में प्रवेश कर गयी। भीतर मौका पाते ही अंग्रेजों पर धावा बोल दिया। हतप्रभ अंग्रेज संभल पाते कि इन वीरांगनाओं ने द्वार रक्षकों को मारकर किले का दरवाजा खोल दिया। रानी वेलु अपनी सेना के साथ प्रलय बनकर शत्रु पर टूट पड़ीं।उनकी तलवारें बिजली बनकर शत्रु पर गिरने लगीं।
कहते हैं कि इसी दौरान कुयिली को अंग्रेजों के गोला बारूद भंडार का पता चला। उस वीर नारी ने मंदिर में पूजा हेतु रखे घी को अपने शरीर पर उड़ेल लिया और खुद को आग लगा ली।
फिर आग बरसाती कुयिली तलवार से सिपाहियों को काटती हुई अंग्रेजों के गोला-बारूद भंडार में घुस गयी, उसे जलाकर नष्ट कर दिया। मातृभूमि की रक्षा में इस तरह का आत्मबलिदान देने की संभवत: यह पहली घटना है।
आखिर अंग्रेजों ने घुटने टेक दिये, वेलु की प्यारी शिवगंगा दासता की बेड़ियों से मुक्त हो चुकी थी।
यह 1780 की बात है।रानी वेलु नचियार भारत की पहली रानी थीं, जिन्होंने 1857 के स्वाधीनता संग्राम से बहुत पहले ही, अंग्रेजों का अभिमान मिट्टी में मिलाकर अपना राज्य वापस हासिल किया था।
और फिर एक दशक तक राज भी किया। वो भारत की पहली ‘झांसी की रानी’ थीं। हर भारतीय को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी गाथा को स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।