केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि विधेयक का विरोध लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यूपीए( UPA) को अगर कुछ और दलों का समर्थन मिल गया तो NDA के लिए इस बिल को उच्च सदन में पास करवाना बहुत मुश्किल हो जाएगा क्योंकि NDA के पास उच्च सदन में बहुमत नहीं है ।इसे पास कराने के लिए NDA को वैसे दलों पर निर्भर रहना होगा जो ना तो NDA के साथ है और ना ही UPA के साथ।
ऐसे दल भी एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। तेलंगाना की सत्तारूढ़ दल TRS ने कहा है कि वह इस बिल का विरोध करेगी। भाजपा के साथ हमेशा रहने वाली अकाली दल ने भी कहा है कि वह केंद्र सरकार से जल्द ही अपना समर्थन वापस ले लेगी। हरसिमरत कौर( Harshimrat Kaur) ने किसानों के बढ़ते विरोध को देखते हुए इस बिल के खिलाफ अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
क्यों हो रहा है इस बिल का विरोध
किसान संगठनों का कहना है कि नए कानून के लागू होने के बाद कृषि क्षेत्र में भी पूंजीवाद का बढ़ावा हो जाएगा। प्रदर्शनकारियों को डर है कि नए कानून के लागू होने के बाद उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP) नहीं मिलेगी। उनका कहना है कि FCI अब राज्यों की मंडियों से खरीदारी नहीं करेगी जिससे एजेंटों को होने वाली 2.5% की कमाई खत्म हो जाएगी । इसके अलावा राज्यों को 6% का कमीशन भी नहीं मिलेगा जो वे FCI के खरीदने पर लगाते थे।
सत्ता पक्ष और विपक्ष का क्या है तर्क
प्रधानमंत्री मोदी(Modi) ने कहा है कि यह बिल आजादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आजादी देने वाला है ।उन्होंने कहा है कि किसानों को MSP नहीं दिलाने वाली बात भ्रामक है।
किसान ही हैं जो ख़रीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं।
मोदी सरकार के तीन 'काले' अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें MSP व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी ज़मीन पूँजीपतियों को बेच दें।
मोदी जी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 14, 2020
कांग्रेसी नेता राहुल गांधी( Rahul Gandhi) ने कहा है कि यह बिल एक किसान विरोधी षड्यंत्र है ।