आज से 73 साल पहले 33 करोड़ देशवासियों की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन आंखों ने जो सपना देखा था, वो सपना अब साकार होने की कगार पर था, और वो सपना था अंग्रेजी हुकूमत से भारत की आजादी का। लेकिन हमें ये आजादी एक दिन में नहीं मिली। आजाद भारत के सपने को पूरा होने में करीब-करीब पूरी एक सदी का वक्त लग गया।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कि आखिर वो कौन सी ऐसी परिस्थियां थीं जिसने अग्रेजों को घुटनों के बल लाकर खड़ा कर दिया था, और भारत समेत उन तमाम गुलाम मुल्कों को उन्हें आजाद करना ही पड़ा। दरअसल ये बात 1947 से दो साल पहले यानी 1945 की है। जब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन के आम चुनाव में लेबर पार्टी को जीत हासिल हुई, तब लेबर पार्टी ने अपने उस वादे को पूरा किया, जिसमें ब्रिटेन की उपनिवेशवाद नीति को पूरी तरह से खत्म करने की बात कही गई थी।
उस वक्त अन्य गुलाम देशों के साथ-साथ भारत में भी आजादी के आंदोलन ने तेजी पकड़ ली थी। देश की आबो-हवा में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के स्वर तेज हो हए थे। हिलाज़ा फरवरी 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति भारत में की गई। कहा जाता है कि लॉर्ड माउंटबेटन भारत को पहले जून 1948 को आजाद करने वाले थे, लेकिन उन्हें एक साल पहले ही यानी 1947 को ही हिदुस्तान को आजाद करना पड़ा।
आजादी की तारीख को लेकर भी काफी मतभेद था। जहां माउंटबेटन 15 अगस्त के ही भारत को आजाद करने पर अड़े थे, तो वहीं दूसरी ओर भारत के कई ज्योतिष इस तारीख के सख्त खिलाफ थे। ज्योतिषियों का कहना था कि 15 तारीख देश की आजादी के लिए शुभ नहीं है। उनके मुताबिक 15 तारीख अशुभ और अमंगलकारी थी। ऐसे में बीच का रास्ता अपनाने पर माथा-पच्ची होने लगी, और बीच का रास्ता निकला भी।
अब सभी की सहमती से तय ये हुआ कि 14-15 तारीख की आधी रात को ही हिंदुस्तान को आजाद किया जाएगा। आजादी घोषणा करने के लिए अभिजीत मुहूर्त को चुना गया जो 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 39 मिनट तक का था, इसी तय समय के दौरान देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को अपना भाषण भी खत्म करना था, हालांकि उस वक्त तक नेहरू आधिकारिक रूप से देश के प्रधानमंत्री नहीं बने थे। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पंडित नेहरू ने आजादी का पहला ऐतिहासिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ दिल्ली के लाल किले से नहीं बल्की वायसराज लॉज (राष्ट्रपति भवन) से दिया था।
14-15 अगस्त की वो मध्य रात सभी देशवासियों के लिए एक ऐतिहासिक पल था, लेकिन इस ऐतिहासिक पल को खुद राष्ट्पिता ने अपनी आंखों से नहीं देखा, और ही पंडित नेहरू का वो ऐतिहासिक भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ ही सुना। इतिहासकारों की माने तो उस वक्त महात्मा गंधी दिल्ली से कोसों दूर बंगाल में मौजूद थे, और हर रात की तरह उस रात भी वो 9 बजे सोने चले गए थे। हालांकि इस बात की खबर महात्मा गांधी को थी कि 15 अगस्त ही वो तारीख है जब हर हिंदुस्तानी आजाद भारत में सांस लेगा।
आज यानी 15 अगस्त 2020 को भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। यानी हमें आजाद हुए पूरे 73 साल बीत चुके हैं। तब से कर अबतक देश ने कई उतार-चढ़ाव देखे। देश का नेतृत्व अबतक कुल 14 प्रधानमंत्री कर चुके हैं, और 15 वें प्रधानमंत्री के रूप में नरेद्र दामोदरदास मोदी ने भारत को विश्वपटल पर एक अलग ही पहचन दिलाई है। आज भारत विश्वगुरू बनने की दिखा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।