
वो महाकवि जिसकी कविताओं के बिना कोई आंदोलन पूरा नहीं होता
“हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए तेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए” दुष्यंत Dushyant Kumar की यह पंक्तियां किसी के हृदय में भी इंकलाबी ज्वार पैदा करने के लिए काफी हैं। वो ग़ज़लकार जिसने गजलों…