मेरी कलम मेरे जज़्बात से इस कदर वाकिफ है कि मैं इश्क भी लिखूं तो इन्कलाब लिखा जाता है : भगत सिंह
मौत जिनकी माशूका थी, खुशदिली और रूमानियत जिनके रूह की खुराक थी, अंतः करण जिनका संभावनाओं और आकांक्षाओं से लबरेज था, जिंदगी जिनकी हर्ष – उन्माद की अठखेलियां से ओतप्रोत थी और मां भारती की सेवा ही जिनके जिंदगी का एकमात्र धर्म था। ऐसी भी एक शख्सियत ने भारत की धरा पर जन्म लिया था।…