Uttrakhand: दलित को उसी की जमीन पर मकान बनाने से रोका गया

आज के समय में जब जगह-जगह पर लोग आरक्षण हटाने की बातें करते हैं तो सबसे पहले वो यही कहते हैं कि जातिवाद और जातिगत भेदभाव अब बहुत पुरानी बात है। अब ऐसा कुछ भी नहीं होता कहीं। लेकिन जब जमीन पर हम इन बातों को देखेंगे तो यह देखते हैं कि जातिवाद का जहर बहुत अंदर तक घुसा हुआ है जो कि समाज में अभी भी उसी तरह फैला है जो बहुत पहले हुआ करता था।

संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर भी कहते थे कि ‘जातिवाद देश की प्रगति में सबसे बड़ी अड़चन है’। अभी हाल ही में उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता से एक वीडियो वायरल हुआ जहां एक सवर्ण महिला अपने पड़ोस में एक दलित परिवार को मकान बनाने से रोकने के लिए गाली गलौज पर उतर आई और बुरी तरह से उन्हें धमकियां देने लगी।

क्या है मामला

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जहां पर एक महिला कुछ लोगों को जातिसूचक शब्दों और गालियों से वहां से भगाने का प्रयास कर रही थी। वीडियो में साफ-साफ देखा जा सकता है कि वह महिला कह रही है कि “इस जमीन पर कोई हरिजन मकान नहीं बना सकता। महिला ने यह भी कहा कि अगर यहां पर हरिजन मकान लगाएंगे तो इलाके का माहौल खराब होगा और हमारे बच्चे खराब माहौल में बिगड़ जाएंगे”।

 

जमीन देखने आये व्यक्तियों द्वारा वीडियो बनाने जाने और रोके जाने पर महिला हाथापाई पर भी उतर आई और कहने लगी कि “मेरी मां ने यहां की मिट्टी धो धो कर ये जमीन की बनाई है, अब यहां इस तरह से हरिजन लोग आ जाएंगे तो मैं अपने पूर्वजों और दादा, परदादा को क्या मुंह दिखाऊंगी”। महिला ने यह भी कहा कि इससे पहले भी यहां कुछ हरिजन लोग आए थे उनको भी इसी तरह से यहां से भगा दिया था।

इस तरह का विरोध झेलने पर जमीन खरीद चुके व्यक्ति बार बार उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे और कह रहे थे कि “अगर तुमको इतनी समस्या है तो हमें 30 लाख दे दें, जिस कीमत की हमने ये जमीन खरीदी है”। ये सुनने के बाद महिला उनसे कहने लगी और धमकी देने लगी कि जल्दी से जल्दी ये जमीन पंडितों को बेच दो और यहां से भाग जाओ।

घटना के बाद क्या हुआ

पीड़ित व्यक्तियों द्वारा एससी, एसटी एक्ट के तहत उस महिला पर मुकदमा दर्ज कर दिया है। इतने गाली गलौज के बाद भी जब वहाँ लोग उस महिला को समझाने आये तब भी वह महिला समझने की कोशिश नहीं कर रही थी बल्कि बोल रही थी मेरी माँ का श्राप लगेगा।

कहाँ कहाँ जातिवाद

जातिवाद केवल दूर-दराज के गांवों में ही नहीं है बल्कि बड़े से बड़े विकसित शहरों में भी जातिवाद अब भी चरम पर है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की ही बात यदि की जाए तो अधिकतर जगह पर अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को किराए का कमरा मिलने में ही बहुत समस्या हो जाती है, कोई भी ठाकुर, ब्राह्मण व्यक्ति अपने मकान में किसी छोटी जाति के व्यक्ति को किराए पर कमरा नहीं देना चाहता।

यही व्यवहार शहरों में पड़ोसियों की तरफ से भी रहता है, यदि पड़ोस में कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति रहने लगे तो आसपास के सभी लोग उसे परेशान करने लगते हैं। के बार इन्हीं कारणों से लोग अपना मकान छोड़ने या कम कीमतों पर बेचने को मजबूर भी हो जाते हैं।

 

– Jugal Kishor

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