कोई आता है, कोई जाता है, कोई गाता है…
जी, यही सच है कोई आये या जाए लेकिन दुनिया अपनी गति से चलती रहती है। जैसे आज महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन है तो हरदिल अजीज फ़िल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से एक मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि भी है।
प्रेमचंद्र ने हिंदी साहित्य को दी अलग पहचान
हिंदी भाषा में लोकनायक तुलसीदास के बाद सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखक, उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद हैं। उन्होंने राजा रानी की जगह , होरी, धनिया, सीलिया, घीसू, माधव आदि को साहित्य के केंद्र में खड़ा करने का कार्य किया। सर्वहारा की सदियों से दबी कुचली आवाज़ को वाणी प्रदान की।
देश के बाहर भी वे भरपूर पढ़े गए। युनेस्को ने विश्व की 60 प्रमुख भाषाओं में इनकी रचनाओं का अनुवाद करवाया। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से अंधविश्वास, दहेज प्रथा, छुआछूत, सूद और ब्याज का विरोध किया।
जब धनपत राय बन गए प्रेमचंद्र
“दुनिया का सबसे अनमोल रतन” उनकी अनमोल कहानी है।”सोज ए वतन” नामक कथा संग्रह में छपी इस कहानी पर ब्रिटिश सरकार भड़क गई थी। हमीरपुर के कलक्टर ने प्रेमचंद को थाने पर बुलवाया और उनके सामने ही “सोज ए वतन” की ज़ब्त 500 प्रतियों को जलाकर ख़ाक कर दिया।
ऊपर से डांटते हुए यह नसीहत भी दी,”मिस्टर धनपत राय! शुक्र करो कि यह मुगलिया सल्तनत नहीं है, नहीं तो तुम्हारी दोनों बाहें काट ली जाती।” उन्हें कई प्रतिबंध लगाकर छोड़ा गया। इसके बाद उन्होंने अपना छद्म नाम “प्रेमचंद” रख लिया और निरंतर लिखते रहे। ग्राम्य कथा और शहरी कथा के ताने बाने का जो अद्भुत समन्वय प्रेमचंद में दिखाई पड़ता है वह विरल है।
प्रेमचंद्र का फार्मूला, हिंदी+उर्दू=हिन्दुस्तानी
भाषा के विषय में भी प्रेमचंद की दृष्टि एकदम साफ थी। वे हिन्दुस्तानी भाषा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने एक फॉर्मूला इस संदर्भ में देते हुए कहा था,”वह दुर्जन मनुष्य है, यह लिखने से बेहतर है यह लिखना कि “वह खराब आदमी है।” उन्होंने यह भी कहा कि “हिंदी+उर्दू=हिन्दुस्तानी।”
प्रेमचंद की भाषा में इतनी शक्ति इसलिए अा पाई कि वे अपने लेखन की सिनॉप्सिस अंग्रेजी में बनाते थे, मूल लेखन ऊर्दू में करते थे और उसका अनुवाद हिन्दी में करते थे।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के गांधी युग को देखना हो तो प्रेमचंद की रचनाओं में देखिए, वहां सबकुछ मिलेगा। ऐसे लेखक पर हम भारतीयों की गर्व करना चाहिए। किसी भी राष्ट्र के नसीब में जब सितारे जागते हैं तभी ऐसे महान साहित्यकार का जन्म होता है। उस दौर में विश्व साहित्य के फलक पर लेखक ऐसे थे जो अपने अपने देशवासियों को एक ही तरीके से जगा रहे थे।
ये थे भारत के प्रेमचंद, रूस के मैक्सिम गोर्की और चीन के लू शुन। ये तीनों अमर साहित्यकार हो गए और इनकी वैश्विक पहचान बन सकी।प्रेमचंद कहा करते थे,”साहित्य राजनीति का पिछलग्गू नहीं, उसके आगे आगे चलने वाली मशाल की तरह होती है। कल्पना की दुनिया से यथार्थ के खुरदुरे धरातल पर साहित्य की पावन गंगा को उतार लाने वाले उस भागीरथ को शत शत प्रणाम।
अजीम फनकार मोहम्मद रफी
आज ही भारत के एक और अनमोल रतन, हर दिल अजीज मोहम्मद रफी को भी याद करने का दिन है। आज मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि भी है। मोहम्मद रफी साहब जैसा फनकार सदियों में एक-आध बार ही पैदा होता है। तीनों सप्तकों में उनकी जादुई आवाज़ सर चढ़ कर बोलती थी। वे संगीत के मसीहा थे तभी तो मशहूर शायर साहिर लुधियानवी ने उनको श्रद्धान्जलि देते हुए कहा था:-
“कहता है कोई दिल गया, दिलवर चला गया, साहिल पुकारता है, समंदर चला गया..
..लेकिन जो बात सच है वो, कहता नहीं कोई, दुनिया से मौशिकी का पयंबर चला गया।”
ऐसे अज़ीम फनकार का जाना हमें भीतर तक साल गया। उनकी मेटेलिक आवाज का जवाब नहीं। उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धान्जलि और अकीदत के फूल।