20 अगस्त 1944 को जन्मे राजीव गांधी अपनी माँ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के प्रधानमंत्री बने थे। शुरुआती दौर में राजीव की राजनीति में कुछ खास रूचि नहीं थी पर उनके भाई संजय गांधी की असामयिक मृत्यु के बाद उनकी माँ इंदिरा गांधी के कहने पर वो राजनीति में आ गए और अमेठी लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को जब उनके बॉडीगार्ड्स ने मार दिया तब पार्टी के कहने पर उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला। 21 मई 1991 को एक रैली के दौरान तमिल चरमपंथी गिरोह एलटीई ने मानव बम से राजीव गांधी की हत्या कर दी।
राजीव के कुछ महत्वपूर्ण काम जिनसे हमेशा याद किये जाएंगे
संचार क्रांति
वो राजीव गांधी ही थे जिन्होंने 1980 के दशक में 21वीं सदी का सपना देखा था और भारत में संचार क्रांति लेकर आए थे। उनके ही कार्यकाल के दौरान MTNL और BSNL की स्थापना हुई। उन्होंने ही कंप्यूटर को भारत में आमजन के हाथों तक पहुंचाने का संकल्प लिया था। सरकार के नियंत्रण से बाहर निकालकर कंप्यूटर को सस्ता किया था और असेंबल कम्प्यूटर्स के द्वारा भारत में कम्प्यूटर ले कर आये थे।
पंचायती राज
केंद्र और राज्य की शक्तियों को बांट कर उन्होंने पंचायती राज की स्थापना की थी। जहां गांव में भी वही अधिकार लोगों को मिले जिससे जो एक केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा मिलते हैं। ग्राम पंचायत को भी उसी स्तर पर सशक्त किया। ग्राम पंचायतों को ज्यादा अधिकार देकर लोकतंत्र को और मजबूत करने का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है।
मतदान की आयु
आज जब 18 वर्ष से ज्यादा होने पर युवा केंद्र या राज्य की सरकार चुनने के लिए सक्षम है तो इसका श्रेय भी राजीव गांधी को भी जाता है। क्योंकि उससे पहले देश में मतदान की आयु 21 वर्ष होती थी जिससे बहुत से युवा मतदान से वंचित रह जाते थे। उन्होंने ही बात को समझा कि 18 वर्ष की आयु में कोई अपनी सरकार चुनने के लिए सक्षम हो सकता है। कई करोड़ युवा उस उस बार चुनाव में वोट देने गए थे जब पहली बार मतदान की आयु 18 वर्ष हुई थी।
शिक्षा का मॉडल
बात जब गरीबों और वंचितों की शिक्षा की आती है तो सबसे पहले नाम जहन में आता है जवाहर नवोदय विद्यालय का। जो देश के हर जिले में स्थित है 1985 में नई शिक्षा नीति लाते समय राजीव गांधी ने गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के प्रतिभा संपन्न छात्रों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने के लिए शिक्षा का नया मॉडल शुरू किया जवाहर नवोदय विद्यालय। जिसकी शुरुआत 1985 में अमरावती और झज्जर से हुई और 1 साल बाद ही धीरे-धीरे देश के कई जिलों में स्कूल खुलने लगे, जहां ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले बच्चों, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा बालिकाओं के लिए सीट भी आरक्षित की जाती थी। इसका मकसद यही था कि ग्रामीण प्रतिभाओं को अच्छे संसाधन मुहैया कराया जाए जहां कॉपी, किताब, शिक्षा, कपड़े सब मुफ्त का हो।
– Jugal Kishor