सावन में नया गीत गाते हैं…

सावन में नया गीत गाते हैं…

चलो आज सावन में नया गीत गाते हैं
आओ फिर आज बात करें सावन की ,
विरह की,कजरी की और मनभावन की ।
राधा के कृष्ण और कदंब के डारन की
अपनी तुम्हारी व मौसमी सुहावन की
बादल काजल ले आते हैं
आंखें कजरारी कर जाते हैं
हाथों में मेंहदी रच जाती है
हरी-हरी चूड़ियां खनकती हैं
चिट्ठी पर एक नजर पड़ती है
सावन में तेरी याद आती है।
बात करें कोयल की और मनगायन की ।
आओ फिर सावन में नया गीत गाते हैं।
सपनों में सजती संवरती हो
इठलाती, चलती, मचलती हो
देहगंध नासिका में भरती है
द्वार की सांकल बज उठती है
बादल से बिजली कड़कती है
तुम फिर बहुत याद आती है।
याद करें मौसम की, साथ गगनांकन की।
आज फिर सावन में नया गीत गाते हैं
पाती के लिखे शब्द सामने उभरते हैं
एक एक हर्फ पढ़े जाते हैं
चक्षु नीर तेरे तल्खी बढ़ाते हैं
तब स्पर्श के सुख ‌बहुत याद आते हैं
कजरी के विरह शब्द अर्थ दे जाते हैं
सपनों के झूले में तुम्हें हम झुलाते हैं
बात हो विशाल की ,नीले नीलांगन की
चलो अब सावन में नया गीत गाते हैं ।

सुनील श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक

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