7 जनवरी 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस मे दोपहर के समय अल्जीरियाई मूल के दो फ्रेंच इस्लामी आतंकियों ‘सईद’ और ‘शरीफ़ कुआशी’ ने ग्रेनेड और बंदूकों से हमला कर दिया। हमला फ्रांस की मशहूर व्यंग्य मैगजीन ‘शार्ली एब्दो’ के ऑफ़िस पर किया गया। हमले मे मैगजीन के एडिटर और मुख्य कार्टूनिस्ट सहित कुल 12 लोगों की जान चली गई और 11 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। पुलिस ने दोनो आतंकवादियों को मार गिराया। बाद मे इसी घटना से जुड़े एक अन्य घटना को अंजाम देने वाले 14 लोगों की धर-पकड़ की गई।
क्यूँ हुआ मैगजीन पर आतंकी हमला
बात 2005 से शुरु होती है। एक डेनिश अखब़ार ‘ईवलान पास्टन’ ने 12 कार्टून छापे। इनमे से कुछ पैगम्बर मोहम्मद के बारे मे भी थे। इस पर वहाँ खूब विवाद हुआ और पत्रिका के कार्टूनिस्ट पर हमले भी हुए। (हालाँकि ‘शार्ली’ ने समय-समय पर स्पष्ट भी किया है कि वह इस्लाम विरोधी नही है। वह बस इस्लाम के कट्टरपंथियों का विरोध करती है। इसके अलावा पत्रिका ईसाई और यहूदी धर्म पर भी व्यंगात्मक कार्टून जारी कर चुकी है।)
बाद मे 2006 मे फ्रेंच पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ मे अपने स्पेशल अंक मे डेनिश अखबार के समर्थन मे उसके कार्टून के साथ और भी कई कार्टून छापे। इन्हे लेकर मुस्लिम देशों मे पत्रिका के खिलाफ गुस्सा फैल गया। पत्रिका को लगातार इस्लामी गुटों द्वारा धमकियाँ मिलने लगी।
2011 मे एक बार फिर पत्रिका ने विशेषांक निकाला। इसमे भी पैगंबर मुहम्मद से जुड़े कुछ कार्टून थे। फिर से पत्रिका को धमकियाँ मिली। इस बार पत्रिका के पेरिस स्थित हेडऑफिस पर बम से हमला भी हुआ, गनीमत रही कि जान-माल का कोई नुकसान नही हुआ लेकिन पत्रिका के व्यंग्य पूर्ववत जारी रहें।
वर्ष 2012 मे अमेरिका मे ‘द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स’ नाम से एक वीडियो आया। इसमे भी पैगंबर को लेकर कुछ आपत्तिजनक बातें दिखाई गई थीं। जाहिर है हंगामा मचना ही था। हंगामा मचा, हिंसा हुई। कई देशों मे अमरीकी दूतावास पर भी हमले किये गये।
2012 में भी कर चुके हैं
अब इस हंगामे को कवर करते हुए सितंबर 2012 में शार्ली ऐब्दो ने फिर से पैगंबर के कार्टून्स छापे। इस बार कार्टून और भी विवादित रहें। कार्टून उस अमरीकी वीडियो से प्रभावित भी थे। इस बार फ्रांस की सरकार ने भी हिंसा-विरोध के डर से पत्रिका से इन कार्टूनों को वापस लेने की अपील की जिसे शार्ली ने अभिव्यक्ति की आज़ादी और फ्रांस की कानूनी सम्प्रभुता के आधार पर खारिज कर दिया।
इसी के चलते अल-क़ायदा के यमन विंग ने 7 जनवरी 2015 को शार्ली के ऑफिस पर हमला करा दिया जिसमे पत्रिका के 11 पत्रकारों सहित 12 लोगों की मौत हो गई। इनमे मैगज़ीन के एडिटर और कार्टूनिस्ट स्टीफेन चारबोनियर भी शामिल थे।
अल-कायदा ने हमले के बाद कहा कि इसके जरिये उसने मुहम्मद के अपमान का बदला लिया है। इस वीभत्स हमले से फ्रांस के साथ-साथ पूरी दुनिया हिल गई। इसी हमले के साथ फ्रांस मे आतंकी हमलों का एक सिलसिला आरम्भ हो गया। चार दिन बाद ही इन आतंकवादियों के एक साथी ने पेरिस के ही एक बाजार मे 4 और लोगों की हत्या कर दी। इसी वर्ष नवम्बर मे ‘इस्लामिक स्टेट’ के आतंकी हमले मे कुल 130 लोग मारे गये।
फिर से धमकी मिलने की वजह क्या है
2 सितम्बर से इस मामले से जुड़ी सुनवाई शुरु हुई है। इसमे उन 14 लोगों पर मुकदमा चल रहा है जो 2015 हमले के बाद पुलिस की गिरफ्त मे आये थे।
अब इसी दौरान पत्रिका ने साढ़े पाँच साल बाद फिर से पैगम्बर मुहम्मद के वही कार्टून छापे जिनकी वजह से पत्रिका को हमले झेलने पड़े थे। पत्रिका को 1 सितम्बर को ऑनलाइन वर्जन और 2 सितंबर को प्रिंट वर्जन मे रिलीज़ किया गया।
इन कार्टूनों के फिर से छापे जाने पर पत्रिका की संपादकीय टीम का कहना है कि,
“यह उन कार्टूनों को छापे जाने का सही समय है। इस मामले में मुक़दमा शुरू हो चुका है और इसलिए इन कार्टूनों को छापना ज़रूरी है। अगर हम ऐसा ना करते तो हम एक तरह से अपने पहले के छपे कार्टून को गलत ठहराने वाले लोगों को सही साबित कर देते।”
अमेरिका हमले के 19 साल
इसी बीच अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के 19 वर्ष पूरे होने पर अल-क़ायदा ने अपने अन्ग्रेजी अखबार ‘वन उम्मा’ मे फ्रांस की इस मैगजीन को फिर से पूर्व मे हुए हमले जैसे ही और हमले झेलने की धमकी दी है। साथ ही यह भी लिखा गया कि जिस तरह से 2015 मे तत्कालीन राष्ट्रपति ‘फ्राँस्वा ओलांद’ को संदेश दिया गया था, उसी तरह का सन्देश वर्तमान राष्ट्रपति ‘एम्मानुएल मैक्रॉ’ को भी दिया जायेगा।