जिनकी आवाज को लेकर वैज्ञानिकों ने भी कहा था कि इतनी सुरीली आवाज फिर कभी नहीं सुनी जाएगी

मात्र 5 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ काम करने वाली लता को उनके पिता का साथ अधिक दिनों तक नहीं मिल सका। वे मात्र 13 वर्ष की ही थीं जब उनके सर से उनके पिता का साया हट गया ।इसके बाद लता के पिता के एक दोस्त मास्टर विनायक ने उनके परिवार को संभाला । इस तरह मास्टर विनायक( Master Vinayak )ने दुनिया को एक बेहतर गायिका देने की पृष्ठभूमि तैयार की।

मराठी फिल्मों से अपने संगीत के सफरनामे की शुरूआत करने वाली लता का बचपन का नाम हेमा था । 5 साल बाद उनके माता-पिता ने उनका नाम लता रख दिया था। वे अपने सभी भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं।

मास्टर विनायक के मौत के बाद लता के मेंटर बने गुलाम हैदर(Ghulam Haider)। गुलाम हैदर ने ही लता मंगेशकर को शशिधर मुखर्जी(Shashidhar mukherjee) से मिलवाया था। ये वही शशिधर मुखर्जी थे जिन्होंने पतली आवाज होने के कारण लता जी को अपनी फिल्म में ‘शहीद’ में मौका नहीं दिया था।

1948 में लता को आखिर पहला ब्रेक मिल ही गया तब उन्हें ‘मजबूर’ फिल्म में गाने का मौका मिला । उसके बाद लता जी के सफर में कभी रुकावट नहीं आई और उन्होंने 30,000 से अधिक गाने गाकर रिकॉर्ड बना डाला।

बेहद शांत और गायन प्रतिभा की धनी लता जी 6 दशकों से भारतीय सिनेमा को अपनी आवाज दे रही हैं। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ( Sachin Tendulkar) उन्हें अपनी माताजी मानते हैं। पूरी दुनिया उनके प्रतिभा की कायल है। उनकी आवाज इतनी सुरीली है कि एक बार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि इतनी सुरीली आवाज ना ही पहले कभी सुनी गई थी और ना ही कभी भविष्य में सुनी जाएगी।

 

स्वर कोकिला कही जाने वाली लता जी को भारतीय संगीत में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए 1969 में पद्मभूषण, 1999 में पद्मविभूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड और 1999 में महाराष्‍ट्र भूषण अवॉर्ड से नवाजा गया है । साल 2001 में भारतरत्‍न मिलने के अलावा उन्हें 3 राष्‍ट्रीय फिल्‍म अवॉर्ड और 12 बंगाल फिल्‍म पत्रकार संगठन अवॉर्ड भी मिले । इसके अलावा उन्हें 1993 में फिल्‍म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्‍कार भी मिला है ।

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