बीएचयू की रजत जयंती पर ऐसा क्या बोल गए गांधी जो सभी को बुरी लग सकती थी

यह बात 21 जनवरी 1942 की है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय को स्थापित हुए 25 साल बीत चुके थे। रजत जयंती का अवसर था और देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। अब इतने बड़े मौके पर ऐसा क्या बोल गए गांधी जो सभी को बुरी लग सकती थी!
महात्मा गांधी के भाषण के कुछ चुनिंदा शब्द:

“मैं जो कुछ कहूंगा नमकीन है कि वह आपको अच्छा न लगे। इसके लिए माफ कीजिएगा।यहां आकर जो कुछ मैंने देखा और देखकर मेरे मन में जो चीज पैदा हुई वह शायद आपको चुभेगी भी।”

आपको बता दें कि यह भाषण राष्ट्रपिता गांधी ने अधिकतर बड़े वक्ताओं द्वारा हिंदी में भाषण न दिए जाने पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा था। उनका मानना था कि हम अंग्रेजों को गाली देते हैं कि उन्होंने हिंदुस्तान को गुलाम बना रखा है लेकिन अंग्रेजी के तो हम खुद गुलाम हैं। खुद और बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं। इनसे बढ़कर दयनीय गुलामी और क्या हो सकती है।

हिंदी की अनदेखी करने वालों पर हमला:

बीएचयू के रजत जयंती समारोह में जब उन्होंने भाषण देना शुरू किया तो हिंदी की अनदेखी करने वालों पर अपने शब्दों से हमला बोलते नज़र आए। हालांकि गांधी जी ने गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पुस्तक ‘अंतिम दिन’ में एक लेख में भी लिखा है।

समारोह में उन्होंने कहा है कि कम से कम यहां तो सारी कार्यवाही अंग्रेजी में नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा में होनी चाहिए। मैं यहां बैठा यही इंतजार कर रहा था कि कोई ना कोई तो आखिर हिंदी या उर्दू में कुछ कहेगा। हिंदी उर्दू न सही कम से कम मराठी या संस्कृत में ही कुछ कहता लेकिन मेरी सब आ जाएं निष्फल हुई।

हिंदी को लेकर गांधी अडिग रहे। उन्होंने सख़्ती से कहा कि हिंदी को लेकर सब बर्दाश्त कर लिया जाता, लेकिन यह तो हिंदू विश्वविद्यालय है। जो बातें इसकी तारीफ़ में अभी कहीं गई, उनमें सहज ही एक आशा यह भी प्रकट की गई कि यहां के अध्यापक और विद्यार्थी इस देश की प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता के जीते जाते नमूने होंगे। मालवीय जी ने तो मुंह मांगी तनख्वाह देकर अच्छे अच्छे अध्यापक यहां पर आप लोगों के लिए जुटा रहे हैं। अब उनका दोष कोई कैसे निकाल सकता है? दोष ज़माने का है।

इस दौरान उन्होंने जापान के युवाओं से प्रेरणा लेने की बात कही। कहा कि आज जापान अमेरिका और इंग्लैंड से लोहा ले रहा है। जापान के लड़के लड़कियों ने जो कुछ पाया है वह अपनी मातृभाषा जापानी के जरिए ही पाया है। अंग्रेज़ी की बदौलत नहीं।

मालवीय जी से गहरे संबंध थे:

रजत जयंती समारोह में गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत ही ‘पूज्य मालवीय जी, सर राधाकृष्णन, भाइयों और बहनों’ से की थी। उन्होंने महामना मालवीय जी को महाराज संबोधित करते हुए कहा था कि उनसे बहुत गाढ़ा संबंध है।उन्होंने कहा कि 25 साल पहले जब इस विश्वविद्यालय की नींव डाली गई थी। तब भी महाराज ही के आग्रह और खिंचाव से मैं यहां आ पहुंचा। उस समय गांधी महात्मा भी नहीं बने थे।

जब बात महात्मा की हुई तो गांधी ने एक और बात का जिक्र किया था। उन्होंने कहा कि बीएचयू में अगर कोई उन्हें महात्मा के नाम से पुकारता था, तो वह सोच लेते थे कि महात्मा मुंशीराम जी के बदले भूल से उन्हें पुकार लिया गया है।

ऐसे पूज्य महात्मा की जयंती पर यह प्रसंग निश्चित तौर पर उनके हिंदी प्रेम को दर्शाता है। साथ ही यह जताता भी है कि हिंदी को महात्मा गांधी राष्ट्रभाषा के रूप में देखते थे। उनके अनुसार राष्ट्रभाषा से जो देश विकास करेगा उसको करने में अन्य भाषाओं के जरिए कई साल लगेंगे। अब भाषा अगर विदेशी हो तो यह अवधि और बढ़ जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *