देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं हैं। 84 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। प्रणब दा फेफड़े के संक्रमण की बीमारी से जूझ रहे थे।
प्रणब मुखर्जी के सफरनामे पर गौर करें तो साधारण से परिवार में जन्में प्रणब की जिंदगी उपलब्धियों से भरी हुआ है। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी, शालीन व्यक्तित्व के धनी, कुशल शिक्षक, कांग्रेस के संकटमोचक, देश के 13वें राष्ट्रपति और सबके प्यारे प्रणब दा भारतीय राजनीति का वो चेहरा थे जिनका सम्मान विपक्ष भी करता है। उन्हें भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया।
जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
शुरुआती जीवन
प्रणब मुखर्जी का जन्म बीरभूम जिले के मिरती गांव में 11 दिसंबर, 1935 को हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे और 1952 से 1964 के बीच बंगाल विधायी परिषद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि रहे। उनकी मां का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था। प्रणब दा ने शुभ्रा मुखर्जी से विवाह किया। दोनों के दो बच्चे हैं जिनमें शर्मिष्ठा मुखर्जी कांग्रेस का जाना माना चेहरा हैं।
शिक्षा
कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की। प्रणब दा ने एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक के तौर पर भी कार्य किया है। पूर्व राष्ट्रपति ने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया।
उपलब्धि
एक शिक्षक के तौर पर शुरूआत करने के बाद प्रणब राजनीति का एक जाना-माना नाम बन गए। केंद्र की राजनीति में दशकों का सफर तय करने के बाद प्रणब मुखर्जी भारत के राष्ट्रपति के तौर पर चुने गए थे. 25 जुलाई 2012 को उन्होंने देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी। हालांकि ये बहुत ही कम लोग जानते है कि एक समय ऐसा भी था जब प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस से बाहर तक कर दिया गया था।
इंदिरा गांधी के करीबियों में से एक प्रणब दा
प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं। प्रणब मुखर्जी का राजनीति मे आना भी इन्दिरा की देन कही जाती है। बताया जाता है कि इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मंडली के षड्यन्त्र के शिकार प्रणब दा हुए जिससे उन्हे मंत्रीमंडल में शामिल नहीं होने दिया गया।और तो और उन्हे कांग्रेस से कुछ समय के लिये निकाल दिया गया था।
जब कांग्रेस से अलग हुए थे प्रणब
प्रणब मुखर्जी हमेशा से ही एक मुखर नेता रहे हैं। कांग्रेस से निकाले जाने के बाद भी वे शान्त नही बैठे। उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। कई साल बाद जब उनसे इस विषय मे पूछा गया तो उन्होने हंस कर कहा कि वे अब अपनी पार्टी का नाम भूल चुके हैं।
नरसिम्हा राव ने करायी थी वापसी
राजीव गांधी के कार्यकाल तक मुखर्जी राजनीतिक वनवास में रहे। उनका वनवास तब खत्म हुआ जब पी वी नरसिंह सत्ता में आये।पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया। राव सरकार में वे 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मंत्री के रूप में कार्यरत रहे। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया।
प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में
प्रणब मुखर्जी के जीवन में दो मौक़े आए जब वे पीएम बन सकते थे, लेकिन दोनों बार बाज़ी उनके हाथ से निकल गई थी।प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की कैबिनेट में वित्त मंत्री थे। इन्दिरा गांधी सरकार में उन्हे ही इन्दिरा के बाद सबसे ज्यादा प्रभावशाली नेता माना जाता था।
1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था।प्रणब मुखर्जी खुद पीएम बनने की इच्छा भी रखते थे, लेकिन कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें किनारे करके युवा महासचिव राजीव गांधी को पीएम बनवा दिया। इस तरह उनका प्रधान मंत्री बनने का ख्वाब अधूरा रह गया।
इसे संयोग कहा जाएगा या दुर्भाग्य की प्रणब मुखर्जी दूसरी बार पीएम बनते बनते रह गये। 1995 के बद कांग्रेस केन्द्र की सत्ता से बाहर हो गयी। प्रणब एक प्रखर नेता के तौर पर अब भी सक्रिय थे। 2004 मे पासा पलटा और कांग्रेसकी सत्ता में वापसी हुई।2004 में सोनिया गांधी ने विदेशी मूल का व्यक्ति होने की चर्चाओं के बीच घोषणा कर दी कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। माना जा रहा था की प्रणब मुखर्जी को पीएम बनाया जाएगा पर सोनिया ने सत्ता की चाभी मनमोहन सिंह को सौंपी और प्रणब मुखर्जी के हाथ से मौक़ा एक बार फिर निकल गया।हालांकि, इसके बाद साल 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया और वो देश के राष्ट्रपति चुने गए।
13वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब दा
राष्ट्रपति के रूप में प्रणब दा का कार्यकाल गैर-विवादास्पद रहा।उन्हें एक ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होने कई आतंकवादियों की फांसी की सजा पर तुरंत फैसले लिये।मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की सजा पर मुहर लगाने में प्रणब मुखर्जी ने बिल्कुल देर नहीं लगाई। उन्होंने याकूब मेमन की मौत की सजा पर भी मुहर लगाई। अपने कार्यकाल में चार लोगों को क्षमादान दिया, हत्या और बलात्कार के दोषी पाए गए 28 लोगों की फांसी की सजा को बरकरार रखा।