श्री कृष्ण की बाल लीला पर नज़ीर अकबराबादी की बहुचर्चित नज़्म

नज़ीर अकबराबादी 18 वीं सदी के एक मशहूर उर्दू शायर रहे हैं वह आगरा के रहने वाले थे और उनकी शायरी हमेशा बहुत ही आमजन की शायरी कही जाती थी। उनकी शायरी में ककड़ी, जलेबी, फलों, सब्जियों की बातें होती थी। उनकी कविताएं, नज़्में ईद पर ही नहीं बल्कि होली, दीवाली, जन्माष्टमी पर भी होती थी। उस दौर में उनकी इतनी अहमियत नहीं मानी जाती थी क्योंकि उनकी शायरी बड़ी बड़ी फलसफों से दूर ककड़ियों, जलेबी पर होती थी इसलिए उपेक्षित ही रहते थे। पर धीरे-धीरे उनका एक अलग मकाम बन गया, आज उर्दू साहित्य में ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य में भी उनको पढ़ाया जाता है। उन्होंने भगवान गणेश, नानक, श्री कृष्ण सब पर नज़्में लिखी। श्रीकृष्ण के बचपन पर लिखी उनकी एक नज़्म बहुत ही प्रचलित है।

श्री कृष्ण की बाल लीला पर नज़ीर के नज़्म

यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

मोहन-स्‍वरूप नृत्‍य, कन्‍हैया का बालपन
बन बन के ग्‍वाल घूमे, चरैया का बालपन
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे
वरना वो आप ही माई थे और आप ही बाप थे
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे
ज्‍योतिस्‍वरूप कहिए जिन्‍हें, सो वो आप थे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

उनको तो बालपन से ना था काम कुछ ज़रा
संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा
मालिक थे वो तो आप ही, उन्‍हें बालपन से क्‍या
वां बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

बाले थे ब्रजराज जो दुनिया में आ गये
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये
इस बालपन के रूप में कितना भा गये
एक ये भी लहर थी जो जहां को जता गये
यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

परदा ना बालपन का अगर वो करते जरा
क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता
झाड़ और पहाड़ ने भी सभी अपना सर झुका
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

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