फ़िल्म – परीक्षा
कलाकार – आदिल हुसैन, संजय सूरी, प्रियंका बोस, शुभम झा
निर्माता – प्रकाश झा
निर्देशक – प्रकाश झा
प्रकाश झा की फिल्में बहुत आलीशान सेट या शानदार विदेशी लोकेशन से दूर, हकीकत के करीब ज्यादा रहती हैं। फिल्मकारों के बीच अच्छी विषय वस्तु और सामाजिक मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं प्रकाश झा। उन्होंने हमेशा ही अपनी फिल्मों से अच्छा संदेश भी दिया है और समाज की अनदेखी गहराई पर चोट भी की है, चाहे मृत्युदंड हो, गंगाजल हो या अपहरण। उनकी फिल्मों का नायक कोई करोड़पति या अय्याश जिंदगी जीने वाला नहीं होता। इस फिल्म में तो उन्होंने एक रिक्शा चलाने वाले को भी फिल्म का नायक के रूप में दिखा दिया।
क्या है कहानी
कहानी रांची से शुरू होती है जहां रिक्शा चलाने वाला बुची पासवान (आदिल हुसैन) वहां के आलीशान स्कूल सफायर के बच्चों को उनके घरों से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ता है। उसका खुद का बेटा बुलबुल (शुभम झा) जिसे सफायर में पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहता है, पर वह सरकारी स्कूल पढ़ता है, पर काफी होशियार होता है। एक दिन बुची को कहीं पर 80 हजार रुपये मिलते हैं जिससे वह बुची का एडमिशन सफायर स्कूल में करा तो देता है, पर वहां जाने के बाद पैसों की जरूरत बढ़ते ही जाती है। मदद के लिए बुलबुल की मां (प्रियंका घोष) बरतन की फैक्ट्री में काम करती है। पैसों की जरूरत इतनी बढ़ जाती है कि बुची बुलबुल की फीस के लिए चोरी करने लगता है। चोरी करते हुए एक बार पकड़ा जाता है। फिर IPS कैलाश आनंद (संजय सुरी) बुलबुल की बस्ती अंबेडकर जा कर वहां के बच्चों को पढ़ाते हैं। कैलाश आनंद का किरदार IPS अभयानंद से लिया गया है। ये शहर के रसूखदारों को काफी अखरता है और बुलबुल को परीक्षा में बैठने से रोकने की कोशिश में वो लग जाते हैं। बुलबुल का परीक्षा में क्या हुआ यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
सकारात्मक पक्ष –
सभी कलाकारों का अभिनय सधा हुआ है। आदिल हुसैन बहुत जल्दी अपने साथ जोड़ लेते हैं। उन्हें देखकर सचमुच का रिक्शा चालक लगते हैं, बाल कलाकार शुभम ने बुलबुल का किरदार बखूबी निभाया है। निर्देशन बेहद जबरदस्त है।
नकारात्मक पक्ष –
बीच-बीच में फिल्म काफी धीमी होने लगती है
कहां देखें –
OTT प्लेटफॉर्म Zee5 पर आप ये फिल्म देख सकते हैं।