Jyotiba Phule: देश से छुआछूत को खत्म करने और समाज के वंचित तबके को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule)की आज जयंती है। समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्रा के पुणे में हुआ था ।
ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) ने समाज की कुरीतियों को खत्म करने के लिए सत्य शोधक समाज की स्थापना की
महात्मा ज्योतिबा फुले ने जाति प्रथा, पुरोहितवाद, स्त्री-पुरुष असमानता और अंधविश्वास को खत्म करने और समाज के निचले तबके को सशक्त बनाने की लड़ाई लड़ी। माहात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों से लड़ने के लिए 1873 में सत्य शोधक समाज नामक संस्था की स्थापना की। सत्यशोधक समाज ने उस समय पिछड़े और दलित समुदायों के उत्थान के लिए ऐतिहासिक काम किए, जिसका खास हथियार तमाशा था। सत्य शोधक समाज के सदस्य जगह-जगह जाकर तमाशा करके लोगों को जागृत करने का काम करते थे।
ज्योतिबा फुले ने 1848 में (Jyotiba Phule)ने देश का पहला महिला विद्यालय खोला
महात्मा फुले की इस संस्था का मुख्य कार्य महराष्ट्र में मनुवादी विचारधारा रखने वालों और उनके अत्याचारों की आलोचना करना था। दलित और पिछड़े वर्ग के लोग ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे और ये महाराष्ट्र के दूरदराज के इलाकों तक फैले थे इसलिए व्याख्यानों और भाषणें से उन तक पहुंचना मुश्किल था। इस से निपटने के लिए ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक समाज ने लोक नाटक की परंपरा तमाशा को हथियार बनाकर अपने संदेश फैलाने शुरू किया।
उस समय समाज ने तमाशा की मूल परंपरा में ब्राह्मण विरोधी संदेशों को बेहतरीन ढंग से जोड़ा। ‘सत्य शोधक जलसा’ के नाम से मशहूर रही इस पहल में तमाशा में नुक्कड़ नाटक के कुछ गुणों को जोड़कर नए ढंग से किसानों से संवाद किया जाता था। तमाशा का मुख्य भाग मंगलाचरण में गणपति वंदन करना था इस वंदना में शोषित समाज को समझाया गया कि वास्तव में गणपति गण के देवता हैं न कि सिर्फ ब्राह्म्णों के।
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इससे लोगों को समझ में आने लगा कि गण का क्या महत्व है लोग जानने लगे कि गण का मतलब जनता है। सत्य शोधक समाज ने तमाशा के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, अत्योचारियों, धोखेबाजों और शोषण के बारे में किसानों, दलित और शोशित वर्ग के बीच प्रचार कि या जिससे समाज के कई बुद्धिजीवि और नेता भी प्रभावित होकर समाज सुधार के कार्य से जुड़ने लगे, और किसानों ने अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाना भी सीखा।
ज्योतिबा फुले के इस आंदोलन में उनके द्वारा स्थापित सत्य शोधक समाज की बड़ी भूमिका थी। ज्योतिबा फुले ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर, 1890 को हुआ उसके के बाद उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने सत्य शोधक समाज के काम को आगे बढ़ाया. वर्तमान समय में समाजशास्त्री गेल ऑम्वेट और रोजालिंड ओ हैनलॉन ने इस बारे में काफी विस्तार से लिखा है, जिसकी वजह से अकादमिक जगत में भी इस की काफी चर्चा है।