जीवित्पुत्रिका पर्व: जानिए व्रत का महत्व, क्या है परंपरा और पूजा की विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे उत्तर भारत में जिउतिया या जितिया भी कहा जाता है।यह व्रत अश्विनी कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मूलतः रखा जाता है। यह एक निर्जला व्रत हैl जिसे मां अपनी संतान की लंबी आयु एवं सुख समृद्धि के लिए रखती हैl इस वर्ष यह निर्जला व्रत 10 सितंबर 2020 को देश और दुनिया में मनाया जाएगा। ऐसे तो इस व्रत का प्रचलन 3 दिन का है l

क्या है यह व्रत

यह व्रत मूलतः बिहार और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता हैl जैसा कि सभी व्रतों में स्थान विशेष पर अलग-अलग नियम होता है lउसी प्रकार इस व्रत का भी नियम स्थान विशेष के अनुसार भिन्न-भिन्न रहता है lअगर यह बात सामने आए कि कौन सा नियम मानना चाहिए। इसके लिए सबसे श्रेष्ठ नियम होगा महिला अपने पति के घर जो भी परंपरा चली आ रही हो, उसी परंपरा और रिवाज के अनुसार व्रत को रखें और पूजन करना चाहिए।

क्या है परंपरा

परंपराओं की बात हो तो शास्त्र सम्मत भी यही है कि ससुराल के नियम और परंपराओं के अनुसार ही पर्व और व्रत मनाएं जाए। हालांकि यह व्रत पितृपक्ष में पड़ता है। इस व्रत में अष्टमी तिथि को मां पूरी तिथि के दौरान या कभी-कभी 24 घंटे से अधिक समय तक बिना अन्न जल के अपने पुत्र को सुखी समृद्ध एवं संकट मुक्त जीवन की यात्रा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है।

इतना ही नहीं बल्कि पितृपक्ष में पड़ने के नाते पितरों से भी मां अपने बच्चे की उन्नति के लिए प्रार्थना करती है।अगले दिन माताएं नवमी तिथि में इस व्रत का पारण करती है। इस बार यह तिथि 11 सितंबर 2020 को होगी।पूर्वांचल और बिहार में पारण से पहले पारंपरिक भोग बना कर पितरों के नाम पर गाय आदि पशुओं को खिला कर व्रत पूरा किया जाता है।

पूजा की विधि

तीन दिनों तक चलने वाले इस व्रत में पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है।इस दिन माताएं स्नान कर ओतांगण बनाती हैं।जिसे पुत्रों के नाम पर बनाया जाता है।इसके बाद सतपुतिया निगल कर व्रत शुरू करती हैं।

दूसरे दिन यानि अष्टमी तिथि में पूरे दिन व्रत रखती हैं,इसलिए इस दिन को निर्जल व्रत कहा जाता है।इसके बाद शाम में गंगा या अन्य पवित्र नदी या कुंड में स्नान करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं।कलश में सोने या चांदी से बनी और कच्चे धागे में पिरोयी जीवित्पुत्रिका को बांध विधि विधान के साथ पूजन करती हैं।

जिवितिया व्रत के अंतिम दिन जिसने पारण कहते हैं,उस दिन पितरों की आराधना होती है।पितरों से पुत्र की सलामती के लिए प्रार्थना की जाती है।इसके बाद व्रत पूरा होता है। इस बार पारण का समय दोपहर 12:00 बजे तक है। इस तरह से यह सबसे कठिन व्रत में से एक माना जाता है।

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