मैं मां गंगा का बेटा हूं हिंदुस्तान की सभ्यता को मुझसे ज्यादा कौन जानेगा: राही मासूम रजा

मैं शायद 7-8 साल का रहा होऊंगा जब मैंने पहली बार महाभारत (Mahabharat) देखी थी। तब मुझे कोई एहसास नहीं था कि इसमें कौन अभिनेता है किसने इसकी पटकथा लिखी है, किसने गाने गाए हैं। मुझे लगता था कि यह सचमुच के पात्र हैं जो श्री कृष्ण, अर्जुन, दुर्योधन, भीष्म आदि हैं। और ये खुद ही गा रहे हैं और ये इनके खुद के संवाद हैं। पर बड़े हुए तो समझ थोड़ी विकसित हुई और तब पता चला कि वह एक शो बनाया गया है जो कि महाभारत पर आधारित है, और उसमें पात्र निभाने वाले कई कलाकार हैं, एक्टर हैं। पर जो सबसे चौंकाने वाली बात थी मेरे लिए वो यह थी कि इसके जो संवाद और इसकी पटकथा लिखी है उसे लिखने वाला एक मुसलमान है।

गंगा का बेटा

राही मासूम रजा (Rahi Masoom Raza) का जन्म गंगा के किनारे बसे जिले गाजीपुर (Ghazipur) के गंगोली गांव में 1 सितंबर 1927 को हुआ था। वह खुद को गंगा का बेटा ही कहते थे, शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने अपना एमए और अपनी पीएचडी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) से की। जहां के बारे में कहा जाता है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मज़ाज़ के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ तो राही मासूम रजा थे, खासकर लड़कियों में।

कई उपन्यास लिखे

अपने शुरुआती दौर में राही मासूम रजा शायर थे पर बाद के दिनों में वो उपन्यासकर की तरह स्थापित हुए। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान लगभग 75 उपन्यास लिखे। जिसमें “टोपी शुक्ला, नीम का पेड़, गरीबे शहर, शीशे का मकां, मैं एक फेरीवाला” काफी मशहूर हुए। इमरजेंसी पर आधारित उनका उपन्यास ‘कटरा बी आरज़ू’ ने राही साहब को एक अलग तरीके से स्थापित किया, और उस उपन्यास ने इमरजेंसी के दौर की एक सच्ची तस्वीर लोगों के सामने रखी। राही साहब खासकर अपने उपन्यास आधा गांव के लिए बहुत ज्यादा चर्चा में रहे। उनके इस उपन्यास को कुछ विश्वविद्यालयों ने अपने सिलेबस में शामिल किया था और इसका खूब विरोध भी हुआ था।

महाभारत की पटकथा

महाभारत की पटकथा लिखने के लिए बी आर चोपड़ा (B R chopra) ने जब राही साहब को कहा तो राही मासूम रजा ने समय की व्यस्तता के कारण बी आर चोपड़ा साहब को मना कर दिया। पर बीआर चोपड़ा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राही साहब का नाम अनाउंस कर चुके थे। तब उनके पास कई हिंदूवादी संगठनों द्वारा पत्र आए कि आपको एक मुसलमान ही मिला महाभारत की पटकथा लिखने के लिए, क्या कोई हिंदू नहीं है? जब यह बात राही साहब को पता चली तो उन्होंने मन बदला और बीआर चोपड़ा साहब को बोला कि ‘अब तो महाभारत की पटकथा और संवाद मैं ही लिखूंगा, मैं मां गंगा का पुत्र हूं और भारत की सभ्यता को मुझसे बेहतर कौन जानता है‘ जब उन्होंने संवाद और पटकथा लिखी तो आज भी लगता है कि उन से बेहतर कोई नहीं लिख सकता था। मानो सारे पात्र हमारे सामने खड़े हों।

पिता के खिलाफ प्रचार किया

राही मासूम रजा और उनके भाई कॉलेज के दिनों से ही कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) से जुड़ गए थे और उनके पिता सन 1930 से कांग्रेस के सदस्य थे। एक बार कम्युनिस्ट पार्टी ने नगर निगम के चुनाव के लिए एक भूमिहीन मजदूर पब्बरराम को खड़ा किया तो राही मासूम रजा और उनके भाई पब्बर राम का प्रचार करने लगे। तब कांग्रेस ने राही मासूम रजा के पिता बशीर हसन आबिदी को टिकट दे दिया। दोनों भाइयों ने पहले अपने पिता को समझाने की कोशिश की पर जब उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस के पुराने सदस्य हैं इसलिए पार्टी की आज्ञा माननी पड़ेगी और चुनाव लड़ना पड़ेगा। तब राही मासूम रजा ने कहा कि हमको भी अब आप के खिलाफ ही प्रचार करना पड़ेगा। उस चुनाव में राही मासूम रजा के पिता की हार हुई और पब्बर राम की जीत हुई।

कई फिल्मों की पटकथा लिखी

राही मासूम रजा ने अपने फिल्मी करियर में करीब 300 फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे। जिसमें कर्ज़, गोलमाल, मैं तुलसी तेरे आंगन की, जुदाई, लमहे जैसी फिल्में थी। उन्हें ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ फिल्म के डायलॉग लिखने के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। 15 मार्च 1992 को मुंबई में ही 64 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

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