मशहूर गीतकार, पटकथा लेखक, निर्देशक और शायर गुलज़ार ना सिर्फ फिल्मी गीतों के लिए जाने जाते हैं, बल्कि शायरी की जिंदगी में भी उनका अच्छा खासा नाम है। उनकी नज़्मों और कविताओं की कई किताबें प्रकाशित हुई हैं। उनकी कई ग़ज़लें बड़े-बड़े के ग़ज़लकारों ने गाई हुई हैं। उन्होंने मिर्जा गालिब और माचिस जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है। गुलजार को ‘त्रिवेणी’ छंद का सृजक भी माना जाता है। उनके जन्मदिन पर पढ़िए उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं।
“थोड़ा सा रफू करके देखिए ना
फिर से नई सी लगेगी
जिंदगी ही तो है”
“घर में अपनों से उतना ही रूठो
कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत,
दोनों बरक़रार रह सके”
“तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
रात भी आयी और चाँद भी था,
मगर नींद नहीं”
“कभी तो चौंक के देखे वो हमारी तरफ़,
किसी की आँखों में हमको भी वो इंतजार दिखे”
“वक्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी हैं”
“बीच आसमाँ में था
बात करते- करते ही
चांद इस तरह बुझा
जैसे फूंक से दिया
देखो तुम….
इतनी लम्बी सांस मत लिया करो”
“आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतहा पर
टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है
न समुंदर निगल सका इस को
न तवारीख़ तोड़ पाई है
वक़्त की हथेली पर बहता
आदमी बुलबुला है पानी का”
“मैं सिगरेट तो नहीं पीता
मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ माचिस है?
बहुत कुछ है जिसे मैं फूँक देना चाहता हूँ”
“आओ तुमको उठा लूँ कंधों पर
तुम उचककर शरीर होठों से चूम लेना
चूम लेना ये चाँद का माथा
आज की रात देखा ना तुमने
कैसे झुक-झुक के कोहनियों के बल
चाँद इतना करीब आया है
आओ फिर नज़्म कहें
फिर किसी दर्द को सहलाकर सुजा ले आँखें
फिर किसी दुखती हुई रग में छुपा दें नश्तर
या किसी भूली हुई राह पे मुड़कर एक बार
नाम लेकर किसी हमनाम को आवाज़ ही दें लें
फिर कोई नज़्म कहें”