वैश्विक महामारी कोरोना वायरस जब पूरे देश में पैर पसार रही थी तब देश में लॉकडाउन लगा उस दौरान गरीब दाने-दाने को मोहताज थे, वहीं गोदामों में सैकड़ों टन अनाज सड़ रहा था।
उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में लॉकडाउन के दौरान मई और जून में भारतीय खाद्यान्न निगम (FCI) में करीब 1600 टन अनाज खराब हो गया था। ऐसा तब हुआ जब देश में लॉकडाउन के दौरान भूखमरी से बचने के लिए लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने अपने गांव का रुख किया था।
प्रवासी मजदूर वाहनों की सुविधा ना होने पर पैदल चलने के लिए मजबूर हो गए थे। कई मजदूरों ने तो रास्तों में ही दम तोड़ दिया था। अब मंत्रालय ने बताया है कि मई महीने में करीब 26 टन अनाज खराब हुआ था।उसी तरह जून में 1452 टन से ज्यादा अनाज खराब हुआ था। जुलाई में 41 टन अगस्त में 51 टन अनाज की बर्बादी हुई थी। मार्च और अप्रैल में अनाज का नुकसान नहीं हुआ था।
उपभोक्ता मंत्रालय ने बताया कि खाद्यान्न पदार्थों को ढककर गोदाम में रखा जाता है जिसमें फ्यूमिगेशन और कीटनाशकों के साथ इसके बचाव के विभिन्न संरक्षण उपाय होते हैं। मगर सावधानियां बरतने के बाद भी प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से खाद्यान्न थोड़ी मात्रा में खराब हो जाता है।
जिम्मेदार अधिकारियों पर होती है कार्रवाई
TIE रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने दावा किया कि खाद्यान्न को किसी भी प्रकार से क्षति होने की स्थिति में मामले की तुरंत जांच की जाती है तथा संबंधित कार्रवाई की जाती है। साथ ही क्षति में जिम्मेदार पाए गए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।
वर्ष 2014 – 2018 के रिपोर्ट अनुसार करीब 125 अधिकारियों के खिलाफ खाद्यान्न क्षति की कार्रवाई की गई।
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने अप्रैल माह में खाद्य और उपभोक्ता मामले में सरकार से भंडारण तथा वितरण के वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर खाद्यान्न की बर्बादी को बहुत कम कर दिया है। उन्होंने बताया कि लोगों की धारणा के विपरीत हम भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में खाद्यान्न की भारी बर्बादी को नए तरीकों को अपनाकर नियंत्रित कर सकते हैं।
केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत प्रवासी मजदूरों को 5 किलो गेहूं और 1 किलो चना मुफ्त में वितरण कर रहा है। हालांकि आंकड़ों से मालूम होता है कि प्रवासी मजदूरों को इस योजना के तहत खाद्यान्न 100 फ़ीसदी वितरित नहीं हुआ है।