उत्तराखंड: प्रकृति और पशुओं के करीब है घी संक्रांति (Ghee sankranti) त्यौहार

उत्तराखंड लोकपर्वों का क्षेत्र है और हर माह कई पर्व यहां होते हैं, जिसमें अधिकतर प्रकृति के करीब ले जाने वाले पर होते हैं। भादो मास के संक्रांति को कुमाऊं क्षेत्र में एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे ‘ओलगिया’ या ‘घी संक्रांति’ कहते हैं। इस दिन सभी लोग घी खाते हैं और बच्चों के माथे में भी घी चुपड़ा जाता है।

भादो का महीना हरियाली से सराबोर रहता है और पशुओं के लिए भी कोई चारे की कमी नहीं होती, और अधिक गाएं इसी समय ब्याने लगती हैं, यह भी कारण घी संक्रांति के पीछे माना जाता है, कि धन-धान्य से परिपूर्ण रहने और शारीरिक, मानसिक रूप से सुदृढ़ बने रहने के लिए घी संक्रांति त्योहार मनाया जाता है।

कैसे मनाया जाता है त्यौहार

इस दिन सुबह सवेरे घर आंगन लीप कर देहरी पर फूल, अक्षत डाले जाते हैं और सभी को थोड़ा थोड़ा घी खिलाया जाता है। मांस की दाल पीसकर उसके बड़े बनाए जाते हैं और मांस की ही पूड़ियां बनाई जाती हैं। पिनालू के गाबे की सब्जी बनाई जाती है। प्रकृति और पशुधन के संकेत इस त्यौहार के दिन वह भी घी खाते हैं जो कभी घी नहीं खाते। कहावत है कि जो इस दिन घी नहीं खाता वह अगले जन्म में गनेल बनता है, जो कि रेंग रेंग कर चलता है और आलस्य का प्रतीक है।

घी संक्रांति के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ( Trivendra singh rawat) ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स में घी संक्रांति की शुभकामनाएं प्रेषित की और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (harish rawat) ने भी इस त्यौहार को पहाड़ की शान बताया।

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