पुत्री दिवस मनाते समाज को तमाचा मार गई।
बड़बोलों के बीच एक घनघोर सन्नाटा पसार गई।
क्यूं रहे वो यहां जब कदर ही नहीं उसकी,
आखिरकार वो जिंदगी की जंग हार गई।
तुम जात पात में उलझे रहो, वो तो इसके पार गई।
नारी उत्थान के पैरोकारों को फिर से दुत्कार गई।
सीता , गौरी की फोटो को पूजते रहो तुम,
वहां एक लक्ष्मी छोड़ खुशियों का संसार गई।
समाज से फिर वो रक्षा का कर झूठा करार गई।
उत्तर देने के लिए छोड़ प्रश्न वो हजार गई।
तुम्हारी जिंदगी तो फिर से ढर्रे पर चलने लगेगी,
तुम मारते रहो उसे, वो तुम्हारे पुरुषार्थ को ही मार गई।