मौसम वैज्ञानिक के जीवन से जुड़े कुछ अनोखे किस्से

गुरुवार की रात एक ऐसी खबर ने देश की सभी राजनीतिक पार्टियों का दिल झकझोर दिया। ना कहु से दोस्ती ना काहू से बैर वाले रामविलास पासवान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले पासवान के नाम कई वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं। यह जानना आश्चर्य की बात होगी कि राजनीति में भी कोई वर्ल्ड रिकॉर्ड बना सकता है, लेकिन पासवान ने ऐसा कर दिखाया है। उनके नाम है सबसे अधिक वोटों से प्रतिद्वंदी को हराने का रिकॉर्ड। साथ ही सबसे अधिक प्रधानमंत्री की कैबिनेट में बतौर मंत्री दायित्व निभाने का रिकॉर्ड।

राजनीति के मौसम वैज्ञानिक ने बनाया है विश्व रिकॉर्ड

आपको बता दें कि रामविलास पासवान ने 1989 में जनता दल से लड़ते हुए कांग्रेस के महावीर पासवान को 5 लाख़ वोटों से शिकस्त दी थी। इसके साथ ही 1996 से लेकर 2020 में जब तक उन्होंने अंतिम सांस ली वह केंद्र सरकार में मंत्री रहे, फिर चाहे वह यूपीए की सरकार हो या फिर एनडीए की। वर्तमान मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के रूप में अपना दायित्व निभा रहे थे।

जिंदादिली के लिए किए जाएंगे याद

पासवान केवल केंद्रीय मंत्री होने के नाते नहीं जाने जाते हैं। बल्कि वह अपने अनोखे अंदाज के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। फिर चाहे वह 2007 की संकल्प रैली हो, या फिर डोर टू डोर कैंपेन। चाहे वह यूपीए के साथ हूं या एनडीए के सहयोगी दल के रूप में उनकी जिंदादिली के किस्से भारतीय राजनीति में शुमार हैं।

कभी वह लालू के साथ रहे तो कभी नीतीश के, लेकिन दोनों में एक थी जो बात रही वह थी जीत का सिलसिला। उनकी जीत का सिलसिला हमेशा बना रहा। कभी वह ढोल बजाते, नाचते गाते तो कभी होली के रंगों में सराबोर रहते। कभी वह ईद की मुबारकबाद देते भी दिखाई देते। यहां तक की कभी वह पत्नी के साथ रसोई में मदद करते भी दिखाई देते। भारतीय राजनीति में इस जिंदादिली की कमी को पूरा करना शायद संभव न हो सके।

पुलिस फोर्स में जाने वाले आए राजनीति में

रामविलास पासवान के साथ ट्रेजेडी का दौर कभी नहीं थमा। डीजीपी के पद पर चयनित होने वाले पासवान का सपना था कि वह पुलिस फोर्स में जाए लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जिसके कारण वहां भारतीय राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के रूप में शुमार हुए। वह भी जेपी आंदोलन से निकले छात्र नेता थे जोकि देश की संसद में मंत्री बनकर पहुंचे।

बिहार के खगड़िया में 1946 में एक साधारण दलित परिवार में जन्मे पासवान ने कभी राजनीति में जाने का नहीं सोचा था। वह तो एनी और एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। तब देश और बिहार में जयप्रकाश नारायण का बोलबाला था। वह भी उसी समय समाजवादी नेता राम सजीवन के संपर्क में आए और राजनीति में पैर रखा। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

राजनीतिक जीवन

1969 में अलौली विधानसभा से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ बिहार विधानसभा पहुंचे। 1977 में जनता पार्टी से हाजीपुर लोकसभा सांसद संसद पहुंचे कि फिर यह सिलसिला जारी है। हां एक आध बार हार का मुंह देखना पड़ा। 1984 में हाजीपुर से ही वह चुनाव हारे भी तो 2009 में दोबारा हार का स्वाद चखा। कुल मिलाकर 50 साल की उन्होंने विधायकी और सांसदी जीवन बिताया।

इसीलिए आज उनके निधन पर देश के तमाम बड़े राजनीतिक चेहरों की आंखें नम हैं। शायर रामविलास पासवान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के एकमात्र ऐसे चेहरे थे, जिन्होंने देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ चुनाव में हिस्सा लिया। वह विचारधारा से समाजवादी और दलितों दलित उत्थान के बारे में सोचने वाले थे। लेकिन शुरुआती दौर में मिली जुली विचारधारा वाली जनता दल के साथ काम किया। बाद में कॉन्ग्रेस के साथ हुए। इसके बाद अटल सरकार और मोदी सरकार में राष्ट्रवादी सोच के साथ भी नज़र आए।

बेटे चिराग के साथ थे गहरे संबंध

रामविलास पासवान अपने पीछे पत्नी समेत दो बेटियां और बेटे चिराग पासवान को छोड़ गए हैं। एलजेपी और अपने उत्तराधिकारी के रूप में चिराग पासवान को पहले ही स्थापित कर दिया था। हाल ही में बिहार चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले एलजेपी के दिग्गज नेता का चले जाना निश्चित रूप से एक बड़ी क्षति होगी। बेटे चिराग पासवान के साथ उनके संबंध बड़े गहरे थे।

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