Delhi: किसानों द्वारा तीन कृषि कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को लगभग 100 दिनों पूरे हो गए हैं। और किसानों का कहना है कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी, तब तक वह प्रदर्शन करते रहेंगे । किसानों का कहना है कि वह दिल्ली की सीमाओं पर लंबे समय तक टिके रहेंगे इसलिए अब किसानों ने पक्के मकान बनाने का फैसला लिया है।
मिट्टी की ईट से जुड़ाई की जा रही है और इन मकानों की छत छप्पर की है:-
लगभग 100 दिनों से किसानों ने अब तक टेंट या फिर ट्रैक्टर ट्रालियों (tractor) में आशियाना बना रखा था। परंतु अब दिल्ली की सीमाओं पर पक्के मकान बनना शुरू हो गए हैं। यह पक्के मकान ईंट, और सीमेंट (Cement) के इस्तेमाल से बन रहे हैं। मिट्टी की ईंट से जुड़ाई की जा रही है और इन मकानों की छत छप्पर की है। दीवारों के लिए मिट्टी का घोल तैयार हो रहा है और चौखट पर दरवाजे लगाए जा रहे हैं। मजदूर और मिस्त्री भी खुद किसान के बीच के लोग है। टिकरी बॉर्डर और बहादुरगढ़ कोर्ट की तरफ जाने वाला रास्ते की ओर पक्के मकान बनाए जा रहे हैं। इन मकानों की कीमत हजारों में आ रही है।
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क्यों ट्रैक्टर (tractor) ट्रॉली गांव भेज जा रहे हैं :-
बहादुरगढ़ के पास हो रहे धरना प्रदर्शन के किसान कप्तान का कहना है कि ऐसे पक्के घर बनाने की जरूरत इन्हें इसलिए पड़ रही है क्योंकि गांव में गेहूं की कटाई शुरू होने वाली है। वहां ट्रैक्टर ट्रालियों की जरूरत पड़ेगी इसीलिए हम ट्रैक्टर (tractor) ट्रॉली गांव भेज रहे हैं और यहां प्रदर्शन में टिके रहने के लिए मिट्टी के मकान बना रहे हैं और सीमेंट (Cement) से ईट को जोड़ा जा रहा है। बताया जा रहा है इन मकानों की कीमत हजारों में आ रही है, लगभग एक मकान को बनाने का खर्चा 20 से 30 हज़ार रुपए है।
किसानों का कहना है कि मकानों की कीमत उन्हें देनी पड़ रही है पर वही मिस्त्री और मजदूर की कीमत उन्हें देनी नहीं पड़ रही है। क्योंकि मिस्त्री और मजदूर उन्हीं के बीच में है। मिस्त्री जगदीश का कहना है कि खेती भी करते हैं और घर बनाना भी आता है। टिकरी बॉर्डर (Border) पर केवल ऐसे 1-2 घर नहीं, 8-10 मकान बन कर तैयार हो चुके हैं। छत छप्पर की बनेगी जिसके लिए सामान किसान गांव से लेकर आए हैं।