दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले ‘गुरुदेव’ की पुण्यतिथि

बांग्ला के वो महाकवि जिन्होंने एक नहीं बल्कि दो देशों के राष्ट्रगान लिखे। भारत में सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार(Nobel Prize) पाने वाले रविंद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की आज पुण्यतिथि (death anniversary) है। 7 मई 1861 को कलकत्ता में जन्मे रविंद्रनाथ टैगोर जिन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है, वह सिर्फ लेखन में ही गुरुदेव नहीं थे बल्कि एक संगीतकार, चित्रकार और नाटककार भी थे। नाटकों के मंचन में भी वह नजर आते थे, 881 में टैगोर ने पहली बार नाटक में अभिनय किया। उनकी रचनाओं पर कई फ़िल्में और टीवी शो बन चुके हैं।

नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय

टैगोर के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने टैगोर को 1878 में लंदन विश्वविद्यालय में दाखिल करा दिया, पर टैगोर वहां से बिना डिग्री लिए ही लौट आए। वह हमेशा से ही साहित्य के करीब बने रहना चाहते थे। टैगोर ने हजारों गीत लिखे साथ ही साथ उनकी कई नाटक, कविताएं और कहानियां भी समय-समय पर प्रकाशित हुई। 1913 में उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ से नवाजा गया नोबेल प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने।

दो देशों के राष्ट्रगान लिखने वाले इकलौते रचयिता

एक साथ दो देशों का राष्ट्रगान ‘भारत का जन-गण-मन और बांग्लादेश का आमार सोनार बांग्ला’ लिखने का गौरव प्राप्त करने वाले भी वो इकलौते व्यक्ति हैं। यही नहीं बल्कि तीसरे देश श्रीलंका का राष्ट्रगान भी उनके कविता से प्रेरित है। रविंद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी का काफी सम्मान करते थे, भले ही उनके मतों में कभी टकराव होता हो और एक दूसरे से अलग राय रखते हों। टैगोर ने ही महात्मा गांधी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी। 7 अगस्त 1941 को रविंद्रनाथ टैगोर ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

टैगोर- देश की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर

रविंद्रनाथ टैगोर देश की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं और कई देशों में भारतीय साहित्य की पहचान हैं। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए PMO इंडिया के साथ-साथ केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर समेत अन्य कई हस्तियों ने ने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को श्रद्धांजलि दी।

आइए जानते हैं उनके कुछ अनमोल वचन –

जीवन की चुनौतियों से बचने की बजाए उनका निडर होकर सामना करने की हिम्मत मिले, इसकी प्रार्थना करनी चाहिए।
सच्चा प्रेम स्वतंत्रता देता है, अधिकार का दावा नहीं करता।
मिट्टी के बंधन से छूटना पेड़ के लिए कभी स्वतंत्रता नहीं होती।
ईश्वर अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं है, प्रत्येक बच्चे के जन्म पर यह संदेश मिलता है।
मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है

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