योग की अवधारणा, जीवन का आयाम

योग एक ऐसी साधना है जिससे सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। योग मात्र प्राणायाम और आसान नहीं है बल्कि यह संस्कृति,परंपरा और यहां तक कि ईश्वर की आराधना का वैज्ञानिक साधन है। शारीरिक क्रियाओं द्वारा शरीर ही नहीं बल्कि मन और आत्मा का त्रिवेणी संगम ही योग है।

विकारों को दूर करने का उपाय है योग

वर्तमान परिदृश्य में विश्व जिस कोरोना नामक महामारी से जूझ रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। इस स्थिति में स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में योग ही एकमात्र साधन है। प्राणायाम के विभिन्न आयामों द्वारा आत्मशुद्धि कर, हम शरीर में आंतरिक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं और विकारों को बाहर कर सकते हैं।

इम्यूनिटी को मजबूत, डिप्रेशन को दूर भगाने का साधन है योग

इसी प्रक्रिया द्वारा हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि संभव है। कोरोना की इस लड़ाई में शरीर के आंतरिक बल और प्रतिरोधक क्षमता द्वारा ही पार पाया जा सकता है। आज एक तरफ विश्व के अधिकांश लोग अपने घरों में बन्द रहने को मजबूर हैं, वैसी दशा में तनाव और अवसाद से भी मुक्ति पाने का मार्ग ध्यान और योग द्वारा ही मिल सकता है।

आज आवश्यकता है कि स्वयं को दृढ़ बनाने का हर संभव प्रयास किया जाए, जिससे इस महामारी के संकट में स्वस्थ रहकर विजय प्राप्त की जा सके।

सनातन धर्म से जुड़ा है योग

भारत के सनातन परंपरा में यह ध्यान की धारणा के साथ सदैव से विद्यमान है। आदि योगी भगवान शिव जिस ध्यान की मुद्रा शांभवी को धारण करते हैं वह योग साधना का प्रारूप सृष्टि के निर्माण से भी पहले से मौजूद है। कुल मिलाकर मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही योग दर्शन की परंपरा हमारे सनातन धर्म में गहरा प्रभाव छोड़ती दिखाई दे रही है। जैसे-जैसे सनातन परंपरा की शाखाएं जैन और बौद्ध धर्म के साथ योग साधना विश्व के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचा। समय के साथ इसके दर्शन की विकास यात्रा भी हमारे सामने है।

कठिन है योग को परिभाषित करना  

भगवद्गीता में योग शब्द का प्रयोग कई रूपों में किया गया है। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग भी देखा जा सकता है। वर्तमान पद्धति के अनुसार पतंजलि के योग दर्शन को सर्वाधिक सम्मान प्राप्त है। उसमें भी योग के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया है। जैसे पाशुपत योग, महेश्वर योग, क्रिया योग, इन सभी रूपों में योग शब्द के अर्थ हैं वह एक दूसरे से भिन्न हैं। इससे यह मालूम होता है कि योग को परिभाषित करना अत्याधिक कठिन है।

योग के लिए जरुरी है अनुशासन और संयम

शिव शक्ति आराधना का प्रमुख मार्ग तंत्र भी योग पर ही आधारित है। अष्टांग योग द्वारा साधक अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यौगिक क्रियाओं का अनुसरण गृहस्थ भी कर सकते हैं बशर्ते वह अपने अंदर अनुशासनिक प्रवृत्ति, संयम तथा यौगिक नियमों को विकसित करे। योग के बल पर असाध्य रोगों को दूर किया जा सकता है। विभिन्न रोगों के निराकरण के लिए योग की अनेकों क्रियाएं हैं।

नई पीढ़ी का योग की तरफ झुकाव कम

बात अगर वर्तमान परिदृश्य की हो तो नई पीढ़ी का झुकाव योग की तरफ कम होता जा रहा है। जगह-जगह पर योग स्कूल खोलकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन केंद्रों का एक मात्र उद्देश्य है धनार्जन। जिससे योग का वह वास्तविक स्वरूप जो अध्यात्मिक है, जिसका मुख्य लक्ष्य आत्मा की शुद्धि और पवित्रता है, स्वस्थ व्यक्ति का निर्माण, केवल तन से ही नहीं अपितु मन, कर्म और वाणी को भी स्वस्थ करना था। वह कहीं खोकर रह गया है।

शायद यही कारण है कि योग को वैश्विक पटल पर प्रोत्साहित करने के लिए योग दिवस के रूप में मनाने की आवश्यकता पड़ गई। जिससे बड़ी संख्या में वर्तमान पीढ़ी इससे परिचित हो सके।

 

शांभवी शुक्ल

 

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