Chhath Puja: छठ पूजा चार दिनों का त्योहार होता है। पहला दिन नहाय-खाय और दूसरा दिन खरना होता है। हिन्दी पंचाग के मुताबिक, छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है।
इसका छठ पूजा में विशेष महत्व होता है। खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है। खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात प्रसाद रूप में खीर खाई जाती है। आइए जानते हैं खरना का क्या है महत्व
क्या है खरना का महत्व
नहाय-खाय के बाद खरना छठ पूजा का विशेष दिन होता है। छठ पूजा का व्रत रखने वाला व्यक्ति खरना के पूरे दिन व्रत रखता है। उसके बाद रात को खीर खाता है और फिर सूर्योदय के अर्घ्य देकर पारण करने तक ना कुछ खाता है और न ही जल ग्रहण करता है। खरना एक प्रकार से शारीरिक और मानसिक शुद्धि की प्रक्रिया है। इसमें रात में भोजन के बाद अगले 36 घंटे का व्रत रखा जाता है।
खरना के दिन बनता है छठ पूजा का प्रसाद
खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें गुड़ और चावल का खीर बनाया जाता है, साथ ही पूड़ियां, खजूर, ठेकुआ आदि बनाया जाता है। पूजा के लिए मौसमी फल और कुछ सब्जियों का भी प्रयोग होता है। व्रत रखने वाला व्यक्ति इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित करता है। खरना के दिन प्रसाद ग्रहण कर वह व्रत प्रारंभ करता है। छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि चूल्हे में आग के लिए केवल आम की लकड़ियों का ही प्रयोग हो।
छठ पर्व पर खरना के अगले दिन संध्या का अर्घ्य और उसके अगले दिन सूर्योदय का अर्घ्य महत्वपूर्ण होता है।